विदा होते वक्त-सुरेश कुमार गौरव

Suresh kumar

Suresh kumar

विदा होते वक्त 

विदा होते ऐ वक्त फिर लौटकर, यह दिन मत दिखाना!
कोरोना काल के भया-भय इतिहास को, मत दुहराना!!

कितने हो गए काल कवलित, छोड़ गए अपना घराना!
लाव लश्कर सब यहीं रह गए, टूट गया उनका तराना!!

गए वक्त भी न दे सके कोई, अपने को अपना सिरहाना!
खुद जान पर पड़ आई, भूल गए रिश्ते के मोल समझना!!

ऐसी मौत और खौफ की, अपने भी कई साथ छोड़ गए!
राजा-रंक-फकीर सभी, अपना जीवन क्रम को तोड़ गए!!

पर शिक्षक, डाक्टर, नर्स, सफाईकर्मी और सब किसान!
सब बन परिवार जान देकर भी, छोड़ गए अपने निशान!!

ऐ जाते हुए लम्हें!फिर ऐसे बुरे वक्त को दूबारा मत दिखाना!
जिंदगी के इस मेले में फिर कदम इधर दूसरा मत बढ़ाना!!

पिंजड़े में कैद सी माफिक सी हो गई थी ये स्व जिंदगानी!
अब लौट ही जाओ हे कोरोना काल! करो जरा मेहरबानी !!

समझ में तो आती है मानव से इतनी खता क्यों है तुम्हारी!
सबने तो की नहीं खता गुस्ताखी, इतनी विनती है हमारी ‌ !!

पशु-पक्षी अन्य जीव पर खूब कृपा बरसी, बने तुम सुपात्र!
मानव गलतियों पर मानव के लिए पर, बन गए तुम कुपात्र!!

बीत रहे ऐ लम्हें सांसे अब जरा ठीक से तो गुजर जाओ!
पल छीन रुकी हुई खुशियां और महक तो जरा लौटाओ!!

✍️सुरेश कुमार गौरव शिक्षक

पटना (बिहार)
मेरी स्वरचित मौलिक कविता रचना
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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