कुछ तो कहें-चंचला तिवारी

कुछ तो कहें

कई दिन हुए कुछ कहा नहीं
एक युग हुआ कुछ सहा नहीं
आदि हैं कुछ ना कहने का
चुपचाप सब देखते रहने का।

किसी और के शुरू करने का
किसी और के बरबाद होने का
इंतज़ार सदा ही रहता है
चुपचाप मन यही कहता है।

जब अति हो जाता अधर्म का
जब नाश हो जाता मनु में मर्म का
तब ज़रिया बनता महातारण का
रण घातक होता महाभारत का।

जो अग्नि उड़ में जल रही
कहीं से तो घी है पड़ रही
मत थामो इन अंगारो को
लगने दो आग भंगारो को।

बहुत हुवा, कुछ तो कहो
अब तो चुपचाप तुम ना रहो
बाधाएँ है तो हुआ करे
बस मौन अब ना रहा करें।

चंचला तिवारी
तपसी सिंह उच्च विद्यालय 
चिरांद सारण

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