बालक मन-एकलव्य

बालक मन

गिरता है गिरने भी दो
उतरता है उतरने दो,
रोको मत!
क्या पता झरना बनकर
नदियों का उद्गम कहलाए।

बहता है बहनें भी दो
नदियां बन जीने भी दो
रोको मत!
क्या पता सागर से मिल
जल चक्र धरा पोषण कर जाए।

तट छोड़ गर उछल पड़े
उछलने भी दो,
रोको मत!
क्या पता बनकर बाढ़
नव श्रृंगार धरा कर जाए।

रोक सको तो रोको
नदियों को उथला होने से,
रोक सको तो रोको
हरे वृक्ष के कटने से,
पर उनको मत तुम रोको
जो बालक मन बनकर
स्वभाव गति से गिरते, बहते और उछलते।।

एकलव्य
संकुल समन्वयक
मध्य विद्यालय पोखरभीड़ा
पुपरी,सीतामढ़ी

नोट: 1.उथला से तात्पर्य बच्चों के मन में कचरा भरने से।
2.हरे वृक्ष के कटने से तात्पर्य स्वस्थ पर्यावरण से।

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