रामधारी सिंह दिनकर – कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’

Kumkum

माँ सरस्वती के चरणों में,
झुककर मैं वन्दन करूँ।
मेरी लेखनी को शक्ति दो माँ,
तुमसे यही अर्चन करूँ।

राष्ट्रवादी कवि दिनकर जी का,
मैं चरित्र चित्रण करूँ।
कुछ भी लिखने से पहले,
मैं उनका चरण वंदन करूँ।

सिमरिया के पावन धरा पर,
देवतुल्य मानव ने जन्म लिया।
अपनी कृति की रश्मियों से,
इस धरा को धन्य-धन्य किया।

राष्ट्रीय नवजागरण का उत्प्रेरक बन,
त्याग और बलिदान का ज्ञान दिया।
राष्ट्रीयता की अलख जगाकर,
युग को इन्होंने आंदोलित किया।

गाँधीवाद के भावतत्व को,
वाणी देने का प्रयास किया।
माँ भारती की बेड़ियाँ तोड़ने,
तरुणाई का मार्ग प्रशस्त किया।

अपनी ओजपूर्ण रचनाओं से,
युग का नवनिर्माण किया।
देशप्रेम की भावनाओं से,
आमजनों का श्रृंगार किया।

दिनकर जी ने साहित्य के,
भिन्न-भिन्न विधाओं में सृजन किया।
उनके अभियान गीतों ने देखो,
जनमानस का मन मोह लिया।

वीरों की गाथाओं को इन्होंने,
अपने काव्यों में स्थान दिया।
जिसे सुनकर अंग्रेजों के,
मन में डर घर किया।

दिनकर जी अपनी लेखनी से,
अमूल्य काव्यों का सृजन किया।
कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी रच,
जनमानस का मन मोह लिया।

संस्कृति के चार अध्याय रच,
साहित्य को गौरवान्वित किया।
साहित्य अकादमी पुरस्कार दे,
सरकार ने इन्हें सम्मानित किया।

उर्वशी का सृजन कर इन्होंने,
उल्लेखनीय कार्य किया।
ज्ञानपीठ पुरस्कार को भी,
अपने नाम आधीन किया।

अनेक काव्यग्रंथो की रचना कर,
दिनकर जी ने हमें अनुग्रहित किया।
राष्ट्रकवि की उपाधि देकर,
जन-जन ने इन्हें संबोधित किया।

24 अप्रैल 1974 को इन्होंने,
नश्वर जगत को त्याग दिया।
लेकिन अनुपम कृतियों से,
स्वयं को अमरत्व प्रदान किया।

ऐसे महान कवि को मैं,
कोटि-कोटि नमन करूँ।
यह तो है सौभाग्य हमारा,
इनका मैं गुणगान करूँ।

कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर

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