आदर्श गुरु-एकलव्य

आदर्श गुरु

आदर्श रथ जब गुरु पा जाता
जग आदर्श तभी पा जाता
अपने ही कर्मों के मूल्य पर
कर्म जगत है बतला देता।।

भेद यहाँ नहीं पाए कोई
अर्जुन और एकलव्य जगत में
वचन बद्ध न होकर जीना
समग्र विकास दृष्टि पथ में।।

कर्म जगत संसार नियम है
सब अपने कर्मों को पाए
गुरु कर्म सर्वश्रेष्ठ जगत में
गुरु की महिमा गुरु पा जाए।

गुरु कर्म व्यापार नहीं है
चौसर का यह खेल नहीं है
ईश्वर के कर्मों को पाना
गुरु जगत संसार नियम है।।

मानव तन के रूप अनेक
लय-गति अपना पा जाता
निहित गुण सर्वश्रेष्ठ बनाकर
गुरु राह दिशा दे जाता।।

गुरु कहाँ मिट्टी से पूछे
किस रूप को तुझे है पाना
वह तो देख जगत कल्याण
मांग समय है रूप दे जाता।।

मात्रा मिट्टी देख गुरु फिर
व्यर्थ नहीं है जाने देता
दीप बनाकर उसको भी
जग प्रकाश से भर है देता।।

गुरु दृष्टि सम्यक है होती
दीर्घ-न्यून नहीं बात है करती
सब जीव ऊर्जा को पाकर
सर्वोत्तम अपना दे जाती।।

शिष्य सदा अपने कर्मों से
गुरु श्रेष्ठ है कर जाते
देख विवेकानंद शिष्य को
परमहंस को गुरु बताते।।

मातु-पिता, गुरु मित्र बनकर
शिष्य को अव्वल कर जाता
गुरु की महिमा गुरु बताए
एकलव्य गुरु है पा जाता।।

एकलव्य
संकुल समन्वयक
मध्य विद्यालय पोखरभीड़ा
पुपरी, सीतामढ़ी

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