दिनकर-एकलव्य

दिनकर रातों को दिन में बदले, दिनकर वही कहलाते थे सत्ता का पैर जब फिसले राष्ट्रकवि तब हाथ बढ़ाये थे, सत्ता में रह सत्ता का मर्दन दिनकर ही कर सकते…

शपथ हूँ-एकलव्य

शपथ हूँ प्रतिवर्ष 14 सितंबर को तुझे याद करता हूँ, तुम राजभाषा हो राष्ट्रभाषा बनाने की बात करता हूँ,  सम्मान समारोह के द्वारा तुझे एक बार फिर से याद करने…

आदर्श गुरु-एकलव्य

आदर्श गुरु आदर्श रथ जब गुरु पा जाता जग आदर्श तभी पा जाता अपने ही कर्मों के मूल्य पर कर्म जगत है बतला देता।। भेद यहाँ नहीं पाए कोई अर्जुन…

संख्या-एकलव्य

संख्या शून्य से नौ तक को अंक सभी कहता है कुल मिलाकर उनको दस अंक बनता है। रूप विभिन्न होते बच्चों क्रमशः उनको आप जानो जोड़ा सम बेजोड़ विषम फिर…

शून्य-एकलव्य

शून्य अंको में बड़ा शान है शून्य मेरा नाम है ना मैं धन ना मैं ऋण मध्य बैठ संख्या रेखा पर संख्या रेखा समझाती हूँ  बायीं ओर ऋण संख्या होती…

बालक मन-एकलव्य

बालक मन गिरता है गिरने भी दो उतरता है उतरने दो, रोको मत! क्या पता झरना बनकर नदियों का उद्गम कहलाए। बहता है बहनें भी दो नदियां बन जीने भी…

ऊर्जा-एकलव्य

  ऊर्जा उर्जा मुझसे कहती है ना तो मेरा नाश है होता ना कोई निर्माण है करता मेरा बस है रूप बदलता। मेरा नाम तुम कुछ भी रख ले ध्वनि,पवन,यांत्रिक…