मंजूषा के शिल्पकार – रत्ना प्रिया

Ratna Priya

मंजूषा के शिल्पकार

मंजूषा की कलाकृति को, अंतर्मन में धारा है,
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

निर्मला व नारायण के, अद्भुत पुत्र सलोने हैं,
मंजूषा के मिथक सारे , बचपन के खिलौने हैं,
माँ की गोद में अपनी, प्रतिभा को निखारा है|
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

मिली गुरु चक्रवर्ती सम, अंकुरित कर सींचा है,
मंजूषा को पोषित करके, कोमलता से खींचा है,
उदित हुआ सूर्य कला का, मनोज उभरता तारा है|
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

विरासत में मिली परंपरा, को पहचान दिलाने को,
बालक कृत संकल्प हुआ, घर-घर में पहुंचाने को,
इस कला की समृध्दि को, अपना जीवन वारा है|
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

संघर्षों के बिना न कोई, लक्ष्य साध ही पाता है,
काँटों भरे पथ पर चलना, सहज उसे ही भाता है,
इस हेतु साधक ने अपना, तन-मन-धन सब हारा है|
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

लोक-सम्पदा के बिम्बों से, आर्थिक समृध्दि पायी है,
इस क्षेत्र में युवाओं को, प्रगति पंथ दिखायी है,
गुरु-शिक्षा की परम्परा से, अंग प्रदेश उजियारा है|
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

मधुबनी सम मंजूषा भी, अपनी पहचान बनायेगी,
अंग धरती की लुप्त कला, विश्व पटल पर छायेगी,
तप त्याग व पौरुष से, गुरु ने इसे सँवारा है|
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

माता मनसा, शिव की कृपा हर क्षण वरदायी है,
पुरस्कारों व उत्सवों में, देने लगी है दिखायी है,
विश्व स्तरीय गौरव पाये, यह प्रयास हमारा है|
अपनी कला, संस्कृति बचाओ, शिल्पकार का नारा है|

रत्ना प्रिया
Ratna Priya

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