इंसान की कीमत – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra Prasad Ravi

आदमी से कहीं ज्यादा
पशु होता वफादार,
मानव को त्याग हम, पालते हैं स्वान को।

माता-पिता से भी ज्यादा
करते हैं देखभाल,
है घट गई कीमत, जहां में इंसान को।

जमाना बदल रहा
लोग भी बदल रहे,
कैक्टस को रोप काटे-फूलों के बागान को।

जिनसे है पहचान
उनसे हैं अनजान,
“,रवि’ कोई नहीं चाहे,ऐसे में संतान को।

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हथेली पे जान रख
सीमा निगरानी करे,
उचित सम्मान नहीं, मिलता जवान को।

हजारों शूरवीरों ने
जान की आहुति दिया,
देश आज भूल गया, त्याग- बलिदान को।

कथनी और करनी में
जिनकी अंतर होती,
रोज होता जय कारा लोभी- धनवान को।

कुछ बहुरुपिए जो
घूमे संत भेष धर,
आरती उतारें लोग, छोड़ भगवान को।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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