पिता – दया शंकर गुप्ता

daya

गलतियों से सुधरने को,
जीवन में कुछ बनने को,
जिंदगी से संघर्ष करने को,
यूं खाली ना बैठे रहने को,
प्यार से या दुत्कार से
मुझको अब ये कौन कहे?
क्योंकि मेरे पिता अब नहीं रहे रहे।।

बच्चे अब तुम भी बड़े हुए,
क्यों ना पैरों पर खड़े हुए?
क्यों उबते नहीं यूं पड़े हुए?
एक दाग सा घर में जड़े हुए,
उनके धौंस का नदी सदा
इसी तरह दिन रात बहे।
पर मेरे पिता अब नहीं रहे ।।

क्या बहनों को कुछ देना नहीं ?
क्या ज्ञान से अपने लेना नहीं ?
क्या जीवन नैया को खेना नहीं ?
क्या मुट्ठी भर भी चबेना नहीं ?
इन प्रश्नों के बौछार को
हम कैसे और कब तक सहें।
पर मेरे पिता अब नहीं रहे ।।

लेकिन जब घर को आते थे,
कुछ मेरे लिए भी लाते थे ,
बड़े प्यार से मुझे बुलाते थे ,
फिर चीज वो मुझको थमाते थे,
वह अपनापन, वो प्यार उनका,
हमने जाना है बिना कहे ।
हाय ! मेरे पिता अब नहीं रहे ।।

पढ़ते देखते तो आते थे ,
जीवन की गणित बताते थे ,
फिर सर पर हाथ फिराते थे ,
कुछ चाहिए? पूछ के जाते थे ,
भगवान क्यों असमय ही
यह जीवन रूपी मकान ढहे।
क्यों मेरे पिता अब नहीं रहे ?।।

कहते निराश नहीं होना है,
संघर्षशील नित होना है ,
सारी शक्ति को संजोना है,
और सफल जीवन में होना है ,
जब सारी दुनिया भाग रही,
मेरा पुत्र तू क्यों ठहरे ?
क्यों मेरे पिता अब नहीं रहे ।।

क्या हुआ जो इतना निराश हुए ,
आगे आकर भी हताश हुए,
मुझे तो तुम पर गर्व है, पुत्र!
अरे प्री मेन्स तो पास हुए ,
यह जीवन की सच्चाई है ,
जिसने भी ठोकर खाई है ,
फिर कोशिशों का पेड़ बनाकर ,
कामयाबी की फुल खिलाई है,
ये जोश, ये जज्बा, ये हिम्मत,
कोई और तो देने से रहे ।
अफसोस! मेरे पिता अब नहीं रहे ।।

आज वो मेरे साथ नहीं ,
सर पर उनका अब हाथ नहीं,
अशीषों का भी सौगात नहीं ,
कहने को मेरे तात नहीं ,
पर जीवन की खालीपन को ,
अब कोई कैसे भरे ।
मेरे पिता अब नहीं रहे।।

मन करता उन्हें बुलाऊं मैं ,
अपना अस्तित्व दिखाऊं मैं ,
उनको भी गर्व कराऊं मैं,
उनकी सेवा कर पाऊं मैं,
उनकी हर इच्छा पूरी करूं
दिन-रात मैं यूं ही कर गहे ।
पर मेरे पिता अब नहीं रहे ।।

मुझको ये आशीर्वाद मिले ,
सपनों में सही संवाद मिले ,
मुझ पर यूं कृपा बनाएं रहें,
मेरे मन मंदिर में समाए रहें,
उनको मैं हर पल याद करूं,
स्नेह उनका भी बनी रहे ।
अब मेरे पिता भी यही❤️ रहे।।

दया शंकर गुप्ता
प्रा 0 वि 0 देवरिया

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