हौसलों की उड़ान-भवानंद सिंह

हौंसलों की उड़ान

बुझे हुए दीये को
फिर से जलाना है,
फैले हुए प्रकाश से
अज्ञान का तिमिर मिटाना है ।
खोए हुए आत्मविश्वास को
फिर से हमें जगाना है,
अपने आत्मविश्वास से हमें
जीवन में आगे बढ़ना है ।
हो सागर कितना ही गहरा
उसमें डूबकी लगाना है,
छिपे हुए मोती को उससे
ढ़ँढ-ढ़ँढकर बाहर लाना है ।
हो पर्वत कितना भी उँचा
राई उसे बनाना है,
अपने हौसलों की उड़ान से
क्षितिज पर हमें जाना है ।
फैले नील गगन में हमको
एक सुराख बनाना है,
आँधी और तूफानों को भी
बन वटवृक्ष हमें सहना है ।
कल-कल बहती नदियों का
धारा को हमें मोड़ना है,
मन में हो विश्वास अगर तो
पथ से बाधा को हटाना है ।
बन उदाहरण औरों के लिए
प्रेरणा जगा सबके दिल में,
हौसलों की उँची उड़ान से
नील गगन को छूना है ।

भवानंद सिंह
उ. मा. वि. मधुलता
रानीगंज, अररिया

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