मानव – दीपा वर्मा

Deepa verma

मानव अपने दंभ मे ..किमी की सुनता नहीं.
मैं सबसे उत्तम बस यही, वह जानता है।
कोई हमसे भी श्रेष्ठ हो सकता है,वह कभी मानता नहीं।
अपने इस गुमान मे,
हो रहा वह मस्त है, जाने क्यों न सोचे वह ,
न कोई ईश्वर है वह ,न कोई संत है।
मानव जीवन कमों का खेला है।
किसी के घर मेला है,तो कोई बिल्कुल अकेला है।
हर आदमी अच्छा है,पर हर आदमी के साथ झमेला है
किसी की अच्छाई ,किसी को भाती नहीं
किसी की ज्यादा खुशी, उससे देखी ञाती नही।
यही एक सोच मानव को, मानव से अलग करती है।
कुछ ऐसे भी लोग हैं,
जिन्हे औरों की खुशी से ,खुशी मिलती है।
आज के जमाने के
खुदा होते हैं वो , इसलिए तो मानव ,मानव से
थोडा जुदा ,होते हैं वो।

दीपा वर्मा
रा.उ.म.वि. मणिका.मुजफ्फरपुर।

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