शिक्षा के दीप- रत्ना प्रिया

Ratna Priya

पंचतत्व से निर्मित दिए में , स्नेह- घृत व बाती डालें।
हम सब शिक्षक आगे बढ़कर ,नव-शिक्षा के दीप जला लें ।।

घना अँधेरा दूर खड़ा हो ,उजाले को वापस लाएँ,
एकता के सूत्र में बँधकर, कर्तव्य- पथ हम चलते जाएँ,
‘चरैवेति‘ के महामंत्र ले,अशिक्षा से है लड़ते जाना,
चलते-गिरते औ सँभलते,मंजिल पथ पर बढ़ते जाना,
अशिक्षा को जड़ से मिटाना,अपना प्रथम लक्ष्य बना लें।
हम सब शिक्षक आगे बढ़कर ,नव-शिक्षा के दीप जला लें ।।

मातृभाषा की बोली में,खेल-खेल में पढ़ना सीखें,
नन्हें – मुन्हें चहकें खेलें , सहज भाव से बढ़ना सीखें ,
बीजों से पौधे विकसाएँ,फलें ,फूलें औ लहलहाएँ,
नौनिहाल पूरी दुनियाँ में, स्वदेश का परचम लहराएँ,
स्वप्न यही है भारत फिर से,जगद्गुरु का गौरव पा ले।
हम सब शिक्षक आगे बढ़कर ,नव-शिक्षा के दीप जला लें ।।

गुरु – शिष्य की परंपरा तो, युगों – युगों की अमिट कहानी,
भारत की मिट्टी में जन्मा, एकलव्य जैसा बलिदानी,
इस मिट्टी की सुगन्ध सदा धरा के कण – कण को महकाती,
पुष्पित, पल्लवित,सिंचित करके विश्व पटल पर है ले जाती,
फिर ऐसा पुरूषार्थ करें हम, खोया गौरव वापस ला लें।
हम सब शिक्षक आगे बढ़कर ,नव-शिक्षा के दीप जला लें ।।

रत्ना प्रिया, शिक्षिका (11-12)
उच्च माध्यमिक विध्यालय
माधोपुर,चंडी
नालंदा

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