प्रकृति
प्रकृति ने सजाया अद्भुत मेला
लगे धरती भी जिससे अलबेला
दिखे अम्बर कभी लाल, नीला तो कभी पीला।
अजब गजब हैं करतब रचाते
जादूगर हो जैसे खेल दिखाते
सूरज, चांद टिम-टिमाते तारे
लीला प्रकृति की भी कितने न्यारे।
गर्मी में जब तपता सूरज
धूप नहीं आग बरसती तब धरती पर
कभी हवा चलती सन-सन
कभी पसीना टपकती टप-टप
कभी धूप, कभी छाँव
सुंदर, मनोहर अपना गाँव।
वर्षा रानी जब आती है
तब प्रकृति भी इठलाती है
चारों ओर हरियाली छा जाती है
देख धरती की मनोहर छटा
अम्बर भी इस पर न्यौछावर
तब हो जाती है।
जब सर्दी है आता
सूरज दादा खूब इतराता
आँख मिचौली का खेल खेले
समझो कुछ सूरज दादा
इस सर्दी को हम मानव
बोलो भाई कैसे झेले ?
मधु कुमारी
कटिहार