महावीर-अवनीश कुमार

महावीर

निरन्तर प्रभेदक बन जो पर्वतों को काटा करते रहते हैं
सागर की धारा को जो मोड़ सके
ऐसा बल भर कर चलते रहते हैं
लड़ जाते है जो बिजलियों से भी ऐसा दम लेकर चलते रहते हैं
जिन्हें अपनी राहों में काँटो की परवाह नहीं 
विघ्नों से न डरकर जो मनुज विघ्नों को गले लगाया करते रहते हैं
अदम्य साहस रगों में भरकर जो
अपनी मंजिल पाया करते रहते हैं

ऐसे ही मनुज इस धरा पर महावीर कहलाया करते हैं।
ऐसे ही मनुज इस धरा पर
महावीर कहलाया करते हैं।।

मुझको बनाया हीं है किसी ने खास
ऐसा विश्वास लेकर जो चला करते रहते रहते हैं

कितना भी क्यों न हो घनघोर अंधेरा
जो आशा का दीपक निरन्तर जलाया करते हैं
रास्ते कितने भी कठिन क्यों न हो
जो मुँह से उफ! न निकाला करते हैं

ऐसे ही मनुज इस धरा पर महावीर कहलाया करते हैं।
ऐसे ही मनुज इस धरा पर महावीर कहलाया करते हैं।

निरन्तर जो करते रहते कर्म निरन्तर
व्यर्थ की बातों में जो यूँ न समय गंवाया करते रहते हैं।
स्वाभिमान से ही जो अपना शृंगार सजाया करते रहते हैं

जो भाग्य भरोसे न बैठा करते हैं
कामदेव के चरणों की जो न गुहार किया करते रहते हैं
सवाल कितना ही कठिन क्यों न हो
जब तक मिल जाये न उत्तर अपनी कश्मकश किया करते रहते हैं

ऐसे ही मनुज इस धरा पर महावीर कहलाया करते हैं।।
ऐसे ही मनुज इस धरा पर महावीर कहलाया करते हैं। 

अवनीश कुमार

उत्क्रमित मध्य विद्यालय अजगरवा पूरब
पकड़ीदयाल
पूर्वी चंपारण (मोतिहारी)

Leave a Reply