महारथी कर्ण का वध-दिलीप कुमार चौधरी

Dilip choudhary

 महारथी कर्ण का वध 

कहते थे लोग जिसे सूत-पुत्र ;
वह था कुन्ती का प्रथम सुपुत्र ।
पाण्डवों का था भ्राता ज्येष्ठ ;
महा दानवीर और धनुर्धर श्रेष्ठ ।

होठों में अपने दबाकर यह राज़
बचाती रही कुन्ती अपनी लाज ।
देखती रही वह उसका अपमान
पर दे न सकी अपनी पहचान ।

उस परमवीर का हुआ यह हश्र ;
मारा गया जब था वह निरस्त्र ।
खेत आया जब रश्मि-रथी ,
भू पर पड़ी थी उसकी अर्थी ।

शोक मनाने पहुँची जब कुन्ती ,
कर्ण के शव पर सिर को धुनती ।
यह देख पाण्डव हुए अचंभित ;
बिल्कुल अवाक और स्तंभित ।

जब माँ कुंती ने उगला राज़ ,
अति क्रोधातुर हुए धर्मराज ।
देख सिरकटा कर्ण का शव
स्वयं मर्माहत हुए थे केशव ।

कर्ण की मौत का उत्तरदायी कौन ?
माता कुंती या श्रीकृष्ण का मौन ?
या फिर, कर्ण था स्वयं जिम्मेवार ;
निरस्त्र अभिमन्यु पर करके वार ।

मित्रता का वह बढ़ाकर हाथ
स्वयं हो गया अधर्मी के साथ ।
धर्म-अधर्म में जब होता युद्ध ,
परिणाम जानते सभी प्रबुद्ध ।

दिलीप कुमार चौधरी
म. वि. रजोखर, अररिया

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