अत्याचार-प्रभात रमण

अत्याचार

माता की ममता हार गई
हारा पिता का प्यार है
भाई का स्नेह भी हार गया
बहन तो सर का भार है
ये कैसा अत्याचार है ?
जो घर की राजकुमारी थी
सबकी राजदुलारी थी
ना कभी किसी से हारी थी
वो चली सजाने अब
गैरों का संसार है
ये कैसा अत्याचार है ?
सब नेह नाते छोड़कर
अपनों का बंधन तोड़कर
सपनों का कंठ मरोड़कर
चली गयी वो सब छोड़कर
अब यहाँ ना कोई अधिकार है
ये कैसा अत्याचार है ?
मन में रहेगा सदा वियोग
मिल रहा अब कैसा संयोग
अंजान शहर अंजान लोग
नवजीवन का यह नव प्रयोग
दो पथिकों का संकल्प योग
जीवनपथ का तारणहार है
ये कैसा अत्याचार है ?
पुरुष प्रधान समाज में
कुछ ना बदला कल और आज में
बहू को ना बेटी माना गया
उसके सपनों को ना जाना गया
सामाजिक पाबन्दियाँ थोपी गयी
रीतिरिवाजों की छूरी घोंपी गयी
क्या यही अब प्यार है ?
ये कैसा अत्याचार है ?
उन्मुक्त गगन की पंछी थी
निष्प्राण और निष्तेज हुई
अब तो पिंजरे में कैद हुई
जिम्मेवारी से है दबी हुई
फूलों सी कोमल नाजुक थी
पर कांटों सी अब छवि हुई
शशि की शीतलता थी उसमें
अब तप्त अग्नि की रवि हुई
मायका तो पीछे छूट गया
ससुराल ही अब संसार है
ये कैसा अत्याचार है ?
पुत्री से गर सन्तोष है
तो पुत्रवधू में क्या दोष है ?
लक्ष्मी बनकर तो आई है
फिर मन में क्यों असन्तोष है ?
क्या गैर की बेटी को कभी अपना सकते नहीं ?
क्या पुत्रवधु को हम पुत्री बना सकते नहीं ?
क्या हमारा मन कुंठित और बीमार है ?
क्या हमारी मानवता पाप का भंडार है?
ये कैसा अत्याचार है ?
ये कैसा अत्याचार है ?

प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
प्रखण्ड – फारबिसगंज
जिला – अररिया

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