राखी-देव कांत मिश्र दिव्य

 

राखी 

पावन सावन मास में आकर
अनुपम स्नेह लुटाती राखी।
भैया के हाथों में सजकर
मन ही मन मुस्काती राखी।।
रंग-बिरंगे फूलों जैसी
प्रेम सुधा बढ़ाती राखी।
हीरे, मोती, स्वर्ण सुसज्जित
रेशम सूत्र सुहाती राखी।।
राधा, रुक्मिणी, द्रोपदी, सीता
हर्षित मन हो, लाती राखी।
अबीर, गुलाल रख कर सुन्दर
थाली मध्य सजाती राखी।।
दो धागों का पावन बंधन
चिर बंधन कहलाती राखी।
भाई कलाई बँधकर जैसे
प्रेम सुधा बरसाती राखी।।
भाई-बहन के सुचिर स्नेह का
सतत सरित सरसाती राखी।
प्यारी बहना की पूर्ण सुरक्षा का
दृढ़ विश्वास दिलाती राखी।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ 

मध्य विद्यालय धवलपुरा, भागलपुर, बिहार

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