कौतूहल भरा वो दिन-विवेक कुमार

Vivek

Vivek

कौतूहल भरा वो दिन

वात्सल्य प्रेम की गोद में पला,
अंजाना अज्ञानता से भरा अबोध बालक।
मां की ममता पिता का प्यार,
अनछुई अनकही अबूझ पहेली सी,
सभी का प्यारा मैं हूं न्यारा,
समय बीता गुजरी राहें,
उठ खड़ा हुआ पैरों पर अपने,
अनौपचारिकता का ज्ञान मिल चुका,
औपचारिकता की अब राह पकड़ने,
खोजने ज्ञान का दीप,
उमर के पांचवें पड़ाव का अंत,
छठवें का वो कौतूहल,
कर रहा मुझे पागल,
निश्छल मन की हिलोर मारती उमंगे,
शिक्षा का दीप प्रज्ज्वलित करने की हसरत
संग नए माहौल का वो मंजर
इंतजार अब न कर पा रहा
नए सत्र की हुई शुरुआत
आ ही गया नामांकन की बात
पहुंच गया अभिभावक संग
नामांकित हुआ विद्यालय में,
हुआ कौतूहल का अंत
अब कुछ कर दिखाने की हसरत
दिल में लेकर
हुई जिज्ञासा की पुनः शुरुआत।

विवेक कुमार
उत्क्रमित मध्य विद्यालय गवसरा मुशहर
मड़वन, मुजफ्फरपुर

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