अब तो खुल जाओ-विवेक कुमार

Vivek

Vivek

अब तो खुल जाओ

आंखे मेरी पथरा गई
तेरे इंतजार में
अधीर हो गया हूं
तेरी याद में
कितने जतन करूं
बात तो ये बतलाओ
अब तो खुल जाओ
अब तो खुल जाओ।

याद तेरी जब आती
नींद है न आती
तेरी तड़प में कलम की धार हुई कुंद
पढ़ाई हुई बिल्कुल मंद
शिक्षण माहौल हुआ बंद
स्कूल पर लगा पाबंद
कैसे पूरे होंगे मेरे अरमान
अब तो खुल जाओ
अब तो खुल जाओ।

अभी तो चढ़ा ही था ज्ञान रथ पर
उतार फेंक किया मुझे बाहर
था कोरोना इस सबका जड़
पड़ी उसके दहशत की मार
फैलाया उसने भंवर का माया जाल
फंसकर कैद हुआ अपने ही घर
डर के साए में हुआ जीने को मजबूर
अब क्या होगा बताओ मेरे यार
अब तो खुल जाओ
अब तो खुल जाओ।

बच्चों की राह में मत डालो रोड़े
हमारे भविष्य से न कर खिलवाड़
विनती करती जग के पालनहार
सुनो विनती करो उपकार
भगाओ उसे चीन के द्वार
कोरोना भय जाल से मुक्त कर,
खोल दो ज्ञान के द्वार
अब तो खुल जाओ
अब तो खुल जाओ।

विद्यालय खुलेगी होगा ज्ञान का प्रसार
तभी बढ़ेगा सीखने का आकार
कुंद पड़े कलम को मिलेगी धार
फिर खिलेगी बगिया विद्यालय होगा गुलजार
चहक उठेंगी बच्चों की बुझी मुस्कान यार
पूरे होंगे हमसब के अरमानों के भार
अब तो खुल जाओ
अब तो खुल जाओ।

विवेक कुमार
उत्क्रमित मध्य विद्यालय गवसरा मुशहर
मड़वन, मुजफ्फरपुर

Leave a Reply