प्रभु वंदना-शुकदेव पाठक

Shukdev

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प्रभु वंदना

हे प्रभु! आप स्वयं परब्रह्म
न है आपका आदि न अंत
आप आवरण रहित अद्वितीय
उत्पत्ति, स्थिति, रक्षा, प्रलय।
आप सभी प्राणियों में स्थित
ब्रह्मवेतर करते उपासना यथोचित
सभी प्राणियों के जीवन दाता
समस्त प्राणियों की अंतरात्मा।
स्वयं गुप्त रहकर लीला करते
प्राणी माया बस नहीं देखते।
हे अचिंत्य ऐश्वर्य संपन्न प्रभो!
त्रयलोक दिशा विदिशा मुक्त विभो।।
मानव यक्ष किन्नर गंधर्व
आपके चरणों की वंदना करते
हे हितेषी सुहृदय ईश्वर नियामक
क्रियाशक्ति प्रधान कार्य सूत्रात्मक।
हे अक्षरों में अकार
छंदों में त्रिपदा गायत्री
मंत्रों में ओंकार
प्रजापतियों में दक्ष प्रजापति।।
आप की महिमा है अनंत
किस शब्द से करूं भगवंत
हे ईशित्व और वशित्व के स्वामी
सभी कालों के अंतर्यामी।
आपको कोटि कोटि प्रणाम
रखिए जन जन का मान
वेद पुराण श्रुति करते गुणगान
रखिए हम पर अपना ध्यान।

✍️ शुकदेव पाठक
मध्य विद्यालय कर्मा बसंतपुर
कुटुंबा, औरंगाबाद, बिहार

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