अदृश्य मित्र-विजय सिंह नीलकण्ठ

अदृश्य मित्र

अदृश्य मित्र भी कभी-कभी
आ जाते हैं सबके काम
ऐसी महानता उनमें होती
छुपा के रखे अपना नाम ।
विपत्तियों में साथ निभाते
सम्पत्तियाँ देख प्रसन्न हो जाते
नहीं ईर्ष्या उनमें होती
सारा जीवन साथ निभाते ।
चाहे जितना दूर बसे वे
सदा जिगर में रहे समाए
सोते जगते सपनों में भी
रखते उनको दिल में बसाए ।
कानन हो या कोई गिरी
अदृश्य हाथ से पार लगाते
धन्य धन्य हैं ऐसे मित्र जो
विपदाओं से रहे बचाते ।
अंत में ऐसे मित्रों का
कोटि-कोटि करूँ नमन
जिसने इस नश्वर जीवन को
बना दिया स्वर्ग सा चमन ।

विजय सिंह नीलकण्ठ 
सदस्य टीओबी टीम

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