शिक्षा शिक्षा और शिक्षा-गिरिधर कुमार

Giridhar

Giridhar

 

बड़ी भीड़ है
स्कूलों में,
शिक्षण संस्थानों में
कोचिंग में
ट्यूशन में
नये नये अखाड़ों में!

बस पास करनी है परीक्षा
डिग्री का जुगाड़ कुछ
कहीं बस नौकरी लग गई,समझो!
बस मिल गया, संसार कुछ?

यह और बातें हैं
कि वह भूल रहा है पहचानना
किसी और को,
परोपकार, परहित के औचित्य को,
शिक्षा संतृप्त शीलता को,
आचरण की विनम्रता को…!

बच्चे! तुम्हारा दोष नहीं!
तुम्हारा मानवीयकरण नहीं हो सका है,
बस तुम रोबोट हो
एक प्रोग्रामिंग मात्र हो
जिससे पूरा किया जाना है बस,
एक उपाधि मात्र
जो किसी नौकरी के उपयुक्त हो!!!
स्वार्थ, मात्र स्वार्थ के सॉफ्टवेयर से संचालित
एक मजबूर व्यक्तित्व…?
और बस
और बस
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!!!

यह शिक्षा है क्या? बताना?
नहीं यह तो अशिक्षा है
मानवीयता का सोलह आना तकनीकीकरण!
और बताना?
हम कहाँ जा रहे हैं?
क्या खो रहें हैं?
क्या पा रहे हैं?

अब भी तो रुकना होगा
समझना होगा, सोचना होगा…
शिक्षा! जो संस्कार है
एक शाश्वत चिंतन है
एक सर्वथा सुकोमल, परोपकार पूरित
मानवीय विचार है
एक संस्कार है
जिससे पल्लवित होता है समाज
पुष्पित होता है संसार।

शिक्षा!
एक साधना है,
एक प्रार्थना,
जो स्वयं का नवनिर्माण है,
जो सभी के हित की चिंता है,
जो स्वयं की खुशियों के लिए है,
जो सभी की खुशियों के लिए है।

गिरिधर कुमार

म. वि. बैरिया

अमदाबाद कटिहार बिहार

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