रूप घनाक्षरी छंद- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

गुरू को समर्पित बागानों में फल-फूल, खेतों बीच कंद-मूल, सुमन को बसंत में, ‘रवि’ महकाता कौन! सूरज कहां से आता ,रोज रात कहाँ जाता, ऊँचा नीला आसमान, तारे चमकाता कौन?…

पावन होली आई है- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

विधा: गीत(१६-१४) आओ स्नेहिल रंग उड़ाओ, पावन होली आई है। बच्चे बूढ़े नर- नारी पर, कैसी मस्ती छाई है।। सुंदर है बच्चों की टोली, सबके कर पिचकारी है। गली- गली…

गुरु को नमन-जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

पूरब में देख लाली, झूमती है डाली डाली, धरती आबाद होती, सूरज किरण से। बसंत बहार देख, फूलों की कतार देख, तितली ऋंगार कर, पूछती मदन से। जंगलों में कंद-मूल,…

शिष्टाचार -जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद सामाजिक रिवाजों से, कट रहे युवा पीढ़ी, शिष्टाचार – व्यवहार, दिखते न वाणी में। सत्य का महल सदा, टिकता है दुनिया में। कागज की नाव कभी, चलती…