दहेज-निधि चौधरी

दहेज दहेज की अग्नि में जलते पिता की, सुनाने हूँ आई कहानी सिसकती। पिता बिटिया की हो गई है पक्की सगाई, कि लाखों में’ हमने खरीदी जमाई। थी खेती पुरानी…

मुनिया-निधि चौधरी

मुनिया पढ़ेगी मुनिया बढ़ेगी मुनिया, जग को रौशन करेगी मुनिया। घरों की है लक्ष्मी, सहेजो सँवारो, सफलता की सीढ़ी चढ़ेगी मुनिया। ज़रा-सी उड़ानें भरे जो ज़माना, परिंदों-सी फिर तो उड़ेगी…