बेज़ुबाँ-अदिति भूषण

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आज दर्द की महफ़िल में,
अश्क़ों ने कुछ ऐसा समाँ बाँधा,
डूबा डाला सबको अपने ही रंग में,
सपनों के घूँघरु टूटे,
शिशे दिल के टुकड़े सरे आम हुए।
बेबसी मुस्कुराती रही,
बेड़ियो की आज है हुई बड़ी बड़ाई,
कैसे इसकी सत्ता ने है अच्छे अच्छों की कश्ती डुबाई।
गूँज उठी तालियों की गड़गड़ाहट,
जब मौन और चुप्पी बहनों ने अपनी चाल दिखाई।

अदिति भूषण

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Aditi Bhushan

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