*आपस में प्यार हो*
(मनहरण घनाक्षरी छंद)
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कोई कहे लाख बुरा-
करता बुराई नहीं,
*अवगुण गुण बन-जाए सद्विचार हो*।
यदि हो अभिन्न मित्र,
दिल में बसा हो चित्र,
*नहीं फर्क पड़ता है, जीत चाहे हार हो*।
सच्चे प्रेमियों की बातें-
छिपाने से छिपे नहीं,
*खुलकर कभी चाहे, नहीं इज़हार हो*।
चाहे दूर रहें भले,
कभी नहीं मिलें गले,
*रहता क़रीब यदि, आपस में प्यार हो*।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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