देवदूत
(मनहरण घनाक्षरी छंद में)
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भाग-१
देवदूत बनकर,
लिया जब अवतार,
वन गिरी जमीं संग, झूमा था गगन है।
खुद जो गरल पीया,
दूसरों के लिए जीया,
ऐसे महा मानव को, दिल से नमन है।
‘पुतली’ के गोद जब,
आए थे मोहन दास,
खुशी से चहक उठा, अपना वतन है।
अंग्रेजों का व्यवहार,
देखकर अत्याचार,
भारती को सौंप दिया, तन व जीवन है।
भाग-२
दुश्मनों के चंगुल से-
आजाद कराने हेतु,
गांँधी जी ने उसी दिन, ले लिया था प्रण है।
अंग्रेजों भारत छोडो,
स्वदेशी का नारा दिया,
दीवानों ने बांँध लिया, सिर से कफ़न है।
नमक सत्याग्रह व,
चंपारण दांडी मार्च,
सैकड़ो नेताओं संग, किया आंदोलन है।
भारतीय सपूतों ने-
दिया जब बलिदान,
ब्रिटिश हुकूमत का, हो गया पतन है।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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