अपना गणतंत्र-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

अपना गणतंत्र 

अपने गणतंत्र का जगत में
मिलकर ही मान बढ़ाएँगे।
इसकी बगिया में हम नित
एक नया प्रसून खिलाएँगे।।
अपने गणतंत्र—–

गण है तभी सारा तंत्र है।
एकता ही तो मूल मंत्र है।
तंत्र की कैद में न गण हो
ऐसा करके दिखलाएँगे।।
अपने गणतंत्र—–

जब हमारी जुड़ीं थीं कड़ियाँ
तब थे हम सोने की चिड़ियाँ।
यही एकता निष्ठा का बल
सभी में फिर से जगाएँगे।।
अपने गणतंत्र—–

हर माँ है ममता की मूरत
बच्चे हैं आँगन की सूरत
सदा इनकी सुरक्षा का ही
संकल्प नया दुहराएँगे।।
अपने गणतंत्र——-

स्वप्नों की हर शय्या से ही
विकास की नित नैया आए।
दमक उठेगा तभी यह देश
नित यही भाव सरसाएँगे।।
अपने गणतंत्र—–

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

भागलपुर बिहार

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