अपने सपने – राम किशोर पाठक

Ram Kishor Pathak

अपने सपने- मणिमाल वार्णिक छंद

कहता यहाँ हर शख्स है, करता यहाँ पर कौन।
जब भी उठी यह बात तो, रहते यहाँ सब मौन।।
मिलते हमें अपने सभी, मिलता नहीं कुछ खास।
पलकें उठा नयना थमी, मिटता नहीं अब प्यास।।

कदमों तले धरती नहीं, उड़ते हुए सब आज।
सपने सभी गढ़ने लगे, करना नहीं पर काज।।
छलते हुए अपने मिले, बदला लहू अब रंग।
किससे यहाँ सपने बुने, किससे करें हम जंग।।

दुनिया हमें कहता यही, हर घाव देकर आज।
बदलाव में चलते रहो, खुशियाँ मिले सब साज।।
जब अर्थ की महता बढ़ी, बदले सभी सुर ताल।
अब कौन है रमता नहीं, सुविधा जहाँ हर हाल।।

सब कामना सुख की करें, फिर क्यों बुरा यह बोल।
बस ढालना खुद है तुम्हें, सब मान गोल मटोल।।
हर राम रावण जंग में, जब जीतते मन राम।
जय सत्य की तब सही, बनता धरा सत धाम।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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