और फिर कोरोना
यह क्या
कसौटियां खत्म नहीं होती!
कितनी बार
कितनी परीक्षाएं
कितनी उदासियां
कौन सी सीमायें हैं इसकी
सारा कुछ तो है
कसौटी पर
हम
हमारे बच्चे
हमारा विद्यालय
हमारी दुनिया
हमारा जीवन
जीवन के सुर और राग
विचलित होता है मन,
होता ही है,
मुखर होता है साथ ही
संकल्प भी
और भी प्रबल
और भी प्रखर
कुछ भी हो
कुछ भी हो
सुबह के अस्तित्व की आस्था
स्थिर है
रात के अंधियारे से
लड़ता रहा है
लड़ता ही रहेगा
हमारा संकल्प
चलते ही रहेंगे
बढ़ते ही रहेंगे हम
उस रौशन सुबह के लिए
जो निश्चित है
कोरोना की हार की तरह।
गिरिधर कुमार
म. वि. बैरिया अमदाबाद
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