बालमन फिर झूले-भोला प्रसाद शर्मा

बालमन फिर झूले बालमन झूले विद्यालय में बालमन फिर झूले—–2 बच्चे भी आए गुरुवर भी आए, देख दूसरों को फूले न समाये। नन्हें भी आकर मन को हर्षाये, टप्पू टुनटुनियाँ…

पिता-भोला प्रसाद शर्मा

पिता  पिता जैसा कोई वरदान नहीं पिता जैसा कोई महान नहीं पिता हम आपकी निन्दिया है चमकाती माँ की बिन्दिया है पिता हँसता हुआ फूल है रक्षा कवच बना त्रिशूल…

पर्यावरण-भोला प्रसाद शर्मा

पर्यावरण सोच-सोचकर ये मन सोच नहीं पाता, क्यों हे! मानव पर्यावरण को छ्लाता। कहता मैं कर्म करता नित भला सबका, पर व्यावहारिक पुरुषार्थ कभी न दिखलाता। मन मसक्क्त की गलियों…