बचपन
जो दुलारा गया वो भी बचपन था
जो सँवारा गया वो भी बचपन था
बेफिक्री में जिसको जीते हम गए
मिला जिससे सहारा वो बचपन था।
डगमगाते कदम अनकही बात पर
ममता वारी गई हर एक सौगात पर
यादों के गाँव में बस गया और कभी
जो छीन सा गया वो भी बचपन था।
नौनिहाल एक अब तक है अंदर बसा
मन के कमरे में वक़्त वो अब-तक रुका,
जिन्दगी के टेढ़े राहों में अक्सर लगा,
राह जो सीधा चला वो बचपन था।
लोड़ियाँ आज भी कानों में कई गूँजती,
दौड़ती भागती अठखेलियों से सजी,
साथी संघर्षों के लम्बे सफर में जो बना
हौसला जिससे मिला वो भी बचपन था।
अब तो ढूंढा किए हम उसी दौर को,
वो ममता, दुलार, प्यार के शोर को,
फिक्र बस अब यही बेफिक्री न रही,
आज गुम हो गया वो भी बचपन था।
फिर करेंगे बात चांद, तारों, रात की
आसमां, पंछी, परियों के जात की,
फिर से जी लेंगें हम वही जिंदगी,
जैसे कभी जीया हमने वो बचपन था।
अपनी आने वाली नस्लों में कभी,
खोजेंगे वक्त गुजरा फिर मिलकर सभी,
मुस्कुराते गालों पर रख कर चुंबन कोई,
याद कर लेंगें क्या अपना वो बचपन था….
अमित आर्यन
राजकीय बुनियादी अभ्याश विद्यालय
नगरपारा भागलपुर