बचपन-प्रीति कुमारी

बचपन

कभी-कभी तन्हाइयों में,
याद आतीं बचपन की बातें।
भरा-पूरा परिवार हमारा,
पल-पल मन को था महकाता।
काश कि बचपन लौट के आता।।
दादा-दादी का वह आँगन,
लगता था कितना मनभावन।
चाचा-ताऊ सब मिलकर रहते,
हम सब बच्चे मस्ती करते।
लुका-छिपी हँसी ठिठोली,
जीवन जैसे थी रंगोली।
हरी-भरी बगिया फुलवारी,
बागों में फूलों की क्यारी।
फूलों पे बैठी तितलियाँ,
देख-देख मुसकाती कलियाँ।
वो भी दिन, क्या दिन थे हमारे,
न ही फिक्र थी, न ही थी चिन्ता,
काश कि बचपन, लौटकर आता।

प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ विद्यापति नगर
समस्तीपुर

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