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बहती गंगा-सी पुण्यधार रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

पद्धरी छंद

सम-मात्रिक छंद, 16 मात्राएँ

आरंभ द्विकल से, पदांत Sl अनिवार्य।

 

मां सिद्धिदायिनी दिव्य भाल।

दिखते हैं सागर से विशाल।।

कर अभ्यागत की पूर्ण आस।

भर दें संस्कारित सुर सुभाष।।

 

माता होगी निश्चित सकार।

बहती गंगा-सी पुण्यधार।।

होता मन का नित्य उपचार।

रे मनमा! दिन गिन शेष चार।।

 

आलोकित तेरा तेजपुंज।

भर दें जीवन का नव्य कुंज।।

जो माता से कर ले लगाव।

क्यों खींचेगा कोई बहाव।।

 

करके आया हूं शांत चित्त।

तू जान रही मां मम निमित्त।।

अरदास करूंगा मैं नवीन।

माता देगी अपनी जमीन।।

 

थक रहे नहीं दृग देख भीड़।

सब संग लिए हैं पृथक पीर।।

मत ऐसे में ‘चुको अनजान’।

ले लो मां से आशीष दान।।

 

रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर

प्रखंड पंडारक

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