बस कुछ दिनों की बात है-पंकज कुमार 

बस कुछ दिनों की बात है

पल पल वो जाता गया 
हमने ख़ुशियाँ मनानी शुरू कर दी
दिल को वो धड़काता गया 
हमने ख़ुशियाँ मनानी शुरू कर दी।

घर की दहलीज़ को जिसने 
लक्ष्मण रेखा बना दिया था 
टिपटीपवा के डर से ज़्यादा जिसने 
डर से डरना सिखा दिया था।

वर्ष २०२० भी बड़ी अजीब था यारों
मौत बाहर खड़ी और क़रीब थी यारों
ज़िंदा रहने का वो एक रूल बना गया 
बंद घर में जिसने रहना सिखा दिया।

वो आँधी-तूफ़ान वो भूकम्प का डर 
इन सबको जिसने पल में भुला दिया
ज़िंदा रहने का वो एक रूल बना गया 
बंद घर में जिसने रहना सिखा दिया।

हमने दिल से वो डर भुला दिया
वो ज़ख़्म वो दर्द भुला दिया
लौट कर वापस न आएगा
यही सोच कर फिर से मुस्कुरा दिया।

नज़र लग न जाए हमारे ख़ुशियों को
पटाखों में उसका नाम लगा दिया 
चला गया वो हमें छोर कर 
इसी ख़ुशी में हमने न्यू ईयर मना लिया।

इस साल फिर से मिल जाए ख़ुशियाँ
यही सोच कर हमने मार्च बिता दिया
लग गयी नज़र फिर से इस जमाने को
लौटकर आ गया वो दरिंदा हमें रुलाने को।

दिलों में वो फिर से वो तकलीफ़ें देने 
हमारी ख़ुशियों पर वो नमक छिड़कने 
अपनो को अपनों से करने दूर 
देखो फिर से वो दरिंदा आ गया।

अब तो अपनी ख़ुशियाँ अपने हाथ है
बस दूर रहने में ही आस है 
जब तक वो अपने आस पास है 
बस कुछ दिनों की बात है।

पंकज कुमार 
प्रा. वि. सूर्यापुर
अररिया

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