बीत गया है बीस
बीत गया है बीस
आ गया दो हजार इक्कीस
कोई नहीं खुश दिखा कहीं पर
सबों को मिली एक टीस।
जनवरी में ठंड से सब थे
ठिठुरन को मजबूर
फरवरी की बात न पूछो
दुख आया भरपूर।
मार्च अप्रैल व मई जून तक
था लॉकडाउन का साया
काज छोड़ परदेश से सब जन
स्व घर वापस आया।
जुलाई भी तो कम नहीं निकला
सबको खूब रुलाया
अगस्त सितंबर न पीछे था
बहुतों को भूखे सुलाया।
हर धर्म के पूजा स्थल
अब तक बंद पड़े हैं
शिक्षा के मंदिर में भी तो
बड़े ताले जड़े हैं।
अक्टूबर नवंबर हो
चाहे दिसंबर भाई
बारह माह कष्ट झेलकर
सबने समय बिताई।
दोबारा न यह समय दिखाना
हे ईश्वर अंतर्यामी
इक्कीस में खुशहाली लाना
देना सबको भोजन पानी।
विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम
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