बेटी की अटल प्रतिज्ञा
एक लड़की है भोली-भाली
प्यारी प्यारी और न्यारी न्यारी।
सुन्दर सुन्दर फूलों जैसे उसके तन,
सुन्दर सुन्दर सोच से भरे उसके मन।
हमेशा हँसती और खिल खिलाती रहती,
मम्मी पापा भाइयों के साथ मजे से रहती।
सब उसे प्यार से बुलाते पिंकी,
वह सबको ऐसी हँसाती कि लगाती सब कोई ठहाकी।
पापा की आँखो की पुतली, मम्मी की आँखो का तारा।
भाई की लाडली बहना, घर की वह सबसे प्यारी गहना।
परोसियों से उसकी बनती है अच्छी,
सब कहते उसको अच्छी और काफी सच्ची।
सबके सुख दुःख गौर से सुनती, सबके मन मे धैर्य बाँधती।
सबके लिए हरदम रहती वफादार,
उसकी प्रतिभाएँ कई है ऐसी शानदार।
पढ़ने में वह हमेशा अव्वल आती,
फिर भी कभी न खुद पर इठलाती।
रूप है उसका इतना सुन्दर, भगवन बसते उसके मन के अन्दर।
उसने ऐसा सीखा व्यवहार, सादा जीवन उच्च विचार।
सबके मन को इतना भाती, सब कहते है इसके जैसी नहीं कही है बेटी।
अपनी सुंदरता पर नहीं कभी इतराती,
कड़ी मेहनत पर जोर लगाती।
अच्छे विचार बड़ो से सीखा उसने, सब लगते है पराये भी उसके अपने।
बड़ी हुई तो वुद्धिमता उसने अपनी ऐसी दिखलाई,
शादी भी न करेगी खुद की, न
बजबायेगी आँगन शहनाई।
पूछो कारण तो कहती है मम्मी का मैं ध्यान रखूँगी,
हूँ बेटी पर बेटा बनकर माँ पापा का ध्यान रखूँगी।
शादी के बाद बेटी हो जाती है पराई,
फिर कैसे मैं ध्यान रखूँगी अपनी प्यारी माई।
पिता और माता दोनों अब हो रहे है बूढ़े,
अभी तो और जरुरत है संग भैया-भाभी को मेरे।
खुद की सोच बदलकर अपना स्वाभिमान दिखाऊँगी,
माँ-बाप का आन और शान बढ़ाऊँगी।
बेटा क्या कर सकता जो बेटी नही कर सकती,
बिन शादी किये और ससुराल जाये बिन माँ के घर नहीं रह सकती।
मेरी माँ चल ना फिर सकती है वो हरदम लेटी रहती है, मैं भला देखूँ कैसे उसको वो भी इस धरती पर एक निःशक्त बेटी है।
पूरे नौ महिने क्या अपना जीवन जिसने मेरे लिए लगाया है,
सौभाग्यशाली मैं वो कर्ज उतारने का कुछ तो मौका आया है।
यदि मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती तो धिक्कार है मुझे अपने जन्म पर,
बेटा बनकर अपनी माँ की बोझ उठाउँगीअपने सर पर।
कौन कहता है बेटी का ससुराल है अपना घर,
मैं कहती हुँ बेटी भी तो यह ठाने कि यही है उसका अपना घर।
रीना कुमारी
प्रा० वि० सिमलवाड़ी पशिचम टोला
बायसी, पूर्णियाँ बिहार