बेटी पर है नाज
बेटी पर है नाज, बेटी ही विश्वास,
बेटी घर की साज, करती है सब काज,
दो कुलों को संवारती है बेटी,
पापा की पाग सजाती है बेटी,
उनके है रूप अनेक, हर रूपों में रम वो जाती,
जीवन में मिले हर रोल,
बड़ी संजीदगी से निभाती,
हर दुःख दर्द सह जाती, उफ तक न करती,
बेटी बन पापा का नूर बन जाती,
मां बन घर को है स्वर्ग बनाती,
बहन बन भाई का रक्षा कवच बन जाती,
पत्नी के रूपों में सफल संगनी का हर फर्ज निभाती,
जिंदगी जिससे शुरू होकर जिस पर हो जाती खत्म,
उस बेटी का करें सम्मान,
है वो बेटा के ही समान,
बेटा-बेटी में न कर फर्क,
बेटी ही मान, बेटी ही सम्मान,
जगत में जिसका बढ़ रहा शान,
हर क्षेत्र में कर रही देश का नाम।
विवेक कर रहा जनमानस से, एक ही गुहार,
बेटी ही मान बेटी ही हमारा अभिमान,
छू रही चोटी, उड़ रही आसमान,
बेटा संग बेटी कंधे से कंधा मिलाकर कर रही हर काम,
सृष्टि की रचनाकार, प्यार से परिवार को रखती बांध,
ऐसी बेटी का करें मान-सम्मान,
करें उनकी महिमा का बखान,
उनका करें सदा गुणगान,
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ संदेश का कर उदबोधन,
होगा जगत का उद्धार ,
बेटी ही मान बेटी ही सम्मान,
बेटी पर है नाज, बेटी ही विश्वास।
✍️ विवेक कुमार
(स्व रचित एवं मौलिक)
उत्क्रमित मध्य विद्यालय, गवसरा मुशहर