भारतीय रेल और मेरी वाराणसी की यात्रा- मनोज कुमार दुबे

भारतीय रेल और मेरी वाराणसी की यात्रा

ये रेल भी यार मजेदार होती है
मानो तो पूरा हिंदुस्तान होती है !
एक बार बलिया से शुरू हुई मेरी यात्रा
भाई साहब साथ थे इस लिए नहीं था कोई खतरा
भीड़ के तंत्र से अपने मुंड कॊ घुसाये
आखिर हम वहाँ पहुँच गये जहाँ थोड़ा आराम फ़रमाये !
तभी ऊपर वाली बर्थ से एक बच्चा चिल्लाया
हाथ मॆ एक लिट्टी उसकी मम्मी ने पकड़ाया !
नीचे एक मोटी मैडम उपर बच्चा नादान था
दिखने में तो भोला भाला पर भीतर से शैतान था 
लिट्टी खाते खाते उसने नीचे पानी भी टपकाया
मोटी मैडम कॊ उसने क्षीर सागर से नहलाया 
इधर नीचे पेपर का बलात्कार हो रहा था
मुख्य पृष्ट गायब था बातो में झगडा आम हो रहा था 
कोई अखिलेश कोई मुलायम सिंह के साथ था
मोदी और राहुल गाँधी में टशन बरकरार था  
तभी हल्ला हुआ बाजू वाली बोगी कोई चोर घुस आया था
नगदी के साथ ब्रीफकेश भी उडाया था  
इधर पत्नी उधर उसका पति परेशान था
जी आर पी का सिपाही गुस्से से लाल था 
तभी एक भिखारी ने कूछ गुनगुनाया
भँवरवा के तोहरा संग जायी गीत सुनाया 
थ्योरी से प्रेटिकल सब कूछ समझ में आ रहा था
भौजी जाते फोन करिह खिड़की से एक सज्जन
जोर जोर से चिल्ला रहा था 
गाड़ी कूछ देर चली तभी एक बोरा नीचे आया
बाजू मॆ बैठे एक गंजे आदमी के सर से टकराया  
तभी मैने बोला भाई साहब ये किसका बोरा है
मेरे बाजू वाले ने कहा कि इसमें तो 12साल का छोरा है 
कूछ लोगों ने उससे पूछा क्यों इस तरह चलते हो भाई
बोरे वाले ने बताया कि ऐसे बहूत आराम है भाई 
गर्मी हो जाड़ा ऐसे काम चल जाता है
फोकट मॆ यात्रा अपना काम हो जाता है 
आखिर हम किसी तरह वाराणसी पहुँच चुके थे
जल्दी जल्दी में दोनो भाई इधर से उधर हो चले थे 
मनोज मनोज कह मेरे भाई साहब चिल्लाये
बाबू ये भारतीय रेल है यह बात समझाये 
इसलिये मैं कहता हूँ यार ये रेल मजेदार होती है
मानो तो पूरा हिंदुस्तान होती है !

मनोज कुमार दुबे
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय भादा खुर्द लकड़ी नबीगंज सिवान

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