भिक्षुक-रीना कुमारी

Rina

भिक्षुक

देखो बच्चो भिक्षुक आया,
दरवाजा उसने खटखटाया,
मैले-कूचे कपडों में आया,
मनही मन जैसे भरमाया,
सब दिखाये उसपर माया,
देखो बच्चो भिक्षुक आया।

झोली उसकी फटी-चिटी,
आँखें उसकी धसी-धसी,
पेट है उसके पीठ सटी,
पैर के तलवे है फटी-फटी,
रोगी जैसी है उसकी काया।
देखो बच्चों भिक्षुक आया।

हाथ में है एक छड़ी पड़ी,
बाहों में थैला भी है पड़ी,
दुवाएँ दे वो हमें बड़ी-बड़ी,
दाता को देखे नजरे भरी
अन्दर मन है उसके शर्माया,
देखो बच्चो भिक्षुक आया।

पैसों की उसे आकाल पड़ी,
दाने को देखे वो लालच बड़ी,
माँगता भिक्षा है वो हर-घड़ी,
देख दुःखी होता वो नोट सड़ी
खाना अच्छा उसे मन भाया,
देखो बच्चो भिक्षुक आया।

कभी लगे उसे जग छल भरी,
जब देखे सिक्के खोटे पड़ी,
समझे किस्मत की मार पड़ी
इसीलिए आयी ऐसी घड़ी।
जीवन उसका दुःखों का साया
देखो बच्चो भिक्षुक आया।

रीना कुमारी  (शिक्षिका)
प्रा० वि० सिमलवाड़ी प. टोला
बायसी पूर्णियाँ  बिहार

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