केवट कथा
आएँ निर्मल कथा सुनाएँ।
भक्तों का हम मान बढ़ाएँ।।
राम कथा में ध्यान लगाएँ।
मनहर सुखद शांति नित पाएँ।।
नाविक था गरीब वह केवट।
नौका गंगा करता खेवट।।
भक्ति हृदय वह प्रभु का करते।
नाम लेत वह पार उतरते।।
नौका छोटी इनकी भाई।
इसमें जीवन सदा समाई।।
राम लखन सिय जब तट आए।
देखो केवट तभी बुलाए।।
केवट दौड़े जल्दी आए।
लख रघुपति को अति हर्षाए।।
गंगा जल्दी पार कराओ।
कभी नहीं डर मन में लाओ।।
पहले चरणन ही धोऊँगा।
तब जाकर मैं कुछ बोलूँगा।।
चाहे लक्ष्मण बाण चलाये।
मेरे मन भय नहीं समाये।।
पद धोकर प्रभु नाव चढ़ाए।
पार उतार परम सुख पाये।।
दे उन्हें जब नाव उतराई।
केवट कहे, नहीं रघुराई।।
भवसागर के तुम खेवैया।
मैं तो माँझी नद का भैया।।
नहीं चाह अब कुछ है मेरी।
कृपा सदा बनी रहे तेरी।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर, बिहार