चेतावनी
अभी जाकर अहसास हुआ है
अपनी औकात
एक अदना-सा विषाणु
अपनी गिरफ्त में ले लेने को उतारु है
उस सभ्यता को
जो विजय पाने का दंभ भारती रही है
पहाड़ों, सागरों, ग्रहों
यहां तक कि
समस्त ब्रह्माण्ड पर
एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में
बादशाहत थोपती रही
प्रकृति पर
यह जताने के लिए
वही सर्वशक्तिमान है, अजर है
आज कितनी डरी-सहमी हुई
दिख रही है
अपनी कुवृत्तियों से
ख़ुद कैद है, बेबश
अपने ही घरों में
चेतावनी है प्रकृति की
यदि वक्त रहते नहीं संभले
शायद वजूद ही न बचे
सिर्फ इतिहास बनकर न रह जाए
कि कभी एक और सभ्यता हुआ करती थी
करोड़ों वर्ष पूर्व डायनासोर की भांति।
संजीव प्रियदर्शी
फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय बरियारपुर मुंगेर
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