छंदों को भी गढ़ना चाहूँ- गीत
गीत गजल मैं पढ़ना चाहूँ।
छंदों को भी गढ़ना चाहूँ।।
पर मुझको कुछ ज्ञान नहीं है।
शब्द शक्ति का भान नहीं है।।
कविता पथ पर बढ़ना चाहूँ।
छंदों को भी गढ़ना चाहूँ।।०१।।
लिंग भेद में उलझा रहता।
कहीं वचन का दोष निकलता।।
उत्तरोत्तर चढ़ना चाहूँ।
छंदों को भी गढ़ना चाहूँ।।०२।।
दुनिया में विद्वान अधिक हैं।
विरले ही तो काव्य रसिक हैं।।
दोष स्वयं को मढ़ना चाहूँ।
छंदों को भी गढ़ना चाहूँ।।०३।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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