चिड़ियाँ का घर
नन्हे-नन्हे “तिनके” लेकर
जाती कहां हो बोलो उड़कर,
सुबह से शाम तक चुनती हो तुम
चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर।
तेरे तिनके की “गठरी”को
जहां कहोगी मैं रख दूँगा,
लग जायेगा तुम को दिनभर
थक जाओगी एक-एक चुनकर।
चुन्नु की बातों को सुनकर
चिड़िया ने फिर देखा ऊपर,
मुझे बनाना है अपना घर
बोल उठी वह चहक-चहक कर।
आँखो में भर आयी ममता
“वात्सल्य” का पर फैलाकर,
बोली मेरे भी बच्चे हैं
बैठे होंगे वह डाली पर।
एक एक तिनके से ही मिलकर
“नीड़” बनेगा पेड़ के ऊपर,
मैं भी अपने बच्चों के संग
खुशियाँ बाँटूगी जी भरकर।
स्वरचित
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा
आर. के. एम +2 विद्यालय
जमालाबाद मुजफ्फरपुर
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