चूहे और बिल्ली-सुधीर कुमार

Sudhir

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बालगीत

चूहे और बिल्ली

एक खाली घर में थे रहते,
बहुत से चूहे मिल के।
खाते खेलते खूब थे सारे,
करते बातें दिल के।
बहुत था सुंदर जीवन उनका,
नहीं थी कोई मुश्किल।
पूरे घर में राज था उनका,
रहते थे सब हिल मिल।
बीत रहे थे दिन खुशी से,
तभी वहां आई एक बिल्ली।
उसने पकड़ा दो चूहे को,
जो खेल रहे थे डंडा गिल्ली।
दोनों को चट करके वह तो,
वहां से बनी चलती।
मचा हड़कंप उन चूहों में,
दो मारे गए बिन गलती।
उसके बाद वह बिल्ली अक्सर,
वहां पर लगी आने।
जो भी चूहा पकड़ा जाता,
लगी उसे वह खाने।
ऐसा हाल देख के चूहे,
रहने लगे काफी उदास।
लगे सोचने कोई तरीका,
मन में रख बचने की आस।
बहुत सोचकर चूहों ने तब,
सबकी एक मीटिंग लगाई।
घर में रहने वाले सारे,
चूहों को उसमें बुलाई।
चूहों ने तब किया फैसला,
एक घंटी मंगवा कर।
बांध दें बिल्ली के गर्दन में,
उसको ही यहां बुलाकर।
खुश होकर सब बोले अब,
बिल्ली जब भी आएगी।
सब मिलकर भागेंगे जब,
हमें घंटी सुनाई देगी।
एक चूहा बोला कि हां,
ये सबसे अच्छा रहेगा।
पर घंटी बांधेगा कौन,
बोलो ये कौन कहेगा।
सांप सूंघ गया चूहों को,
कोई कुछ बोल न पाया।
बिल्ली पड़ी तभी आती दिखाई,
सब भाग के जान बचाया।

सुधीर कुमार

किशनगंज, बिहार

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