दर्द
दर्द अनोखा खूब होता है
पड़ता है जब लोगों पर
तनिक भी भान नहीं होता
जब ठेस पहुंचाते औरों पर।
पशु और पक्षी भी तो हैं प्राणी
जो दर-दर भटकते हैं खाने को
तनिक नुकसान जो हो जाता है
पीटते रहते हैं इन बेजु़बानों को।
पेड़-पौधे तो होते हैं हमारे साथी
धूप में खड़े होकर देते हैं छाँव
बदले में हम दे आते हैं उनको
कुल्हाड़ी से असहनीय दर्द-घाव।
मारकर के इंसान बेजु़बानों को
मन ही मन वह खूब इतराता है
उसे भी होती है दर्द की सिहरन
वह इसको नहीं समझ पाता है।
दर्द का एहसास तब होता है
जब अपना ही कोई रोता है
चोट से आहत होती है सबको
पर कहां यह एहसास होता है।
दर्द की कीमत जाकर उनसे पूछो
जो व्यक्ति अपने को ही खोता है
दिन तो गुज़र ही जाता जैसे तैसे
पर रात को वह कहां से सोता है।
एम० एस० हुसैन “कैमूरी”
उत्क्रमित मध्य विद्यालय
छोटका कटरा
मोहनियां कैमूर बिहार