धूप-छाँव
यात्रा जीवन की है निराली~~
मद्धम – मद्धम कम होती जाती
समझ सके जो समय की घात को, तो
सुलझा पाओगे धूप – छाँव की पहेली.. !
जीवन – वीणा की है तान सुरीली~~
देख अवस्था विचलित मानवता की
मन हो उठा उद्वेलित प्रश्नों से, कि
कब सुलझेगी धूप – छाँव की पहेली..!
जीवन है खुशी औ वेदना की सहेली~~
होती है मित्रता इससे सबकी
पार जो इस भवसागर को करोगे, तो
सुलझा पाओगे धूप – छाँव की पहेली..!
दीप की तरह फैलाओ ज्योति~~
तभी मन से तमस भी दूर होगी
विपद में अनवरत सेवा भाव से ही
प्रतिपल सुलझेगी ये धूप-छाँव की पहेली.!!
शालिनी कुमारी
शिक्षिका
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार )
(स्वरचित रचना )
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