दीन-हीन की आँखें
मैंने इस लॉकडाउन में एक
दीन-हीन व्यक्ति को देखा
पहले जैसा हँसमुख नहीं
ख़ामोश व ग़म के आँसू पिए
चेहरे पर उदासीनता की रेखा
उसकी आँखें कह रही थीं
कोई सहारा तो मिल जाए
इस गरीब बेचारे को
कोई तो दीनों के दुखहर्ता
इस लाचार, असहाय के
लिए, कुछ तो कर जाए
मुझसे तो रहा न गया
निर्निमेष दृष्टि से बार बार
उसे मैं, देखता ही रहा
अजीब सी चमक थी
मेरा अन्तर्मन कह उठा
इसे मदद की, दरकार है
आखिर क्यूँ न ? यह भी
तो एक मानव ही है
कोई तो मदद के लिए
अपना हाथ आगे बढाए
मेरी आत्मा काँप उठी
मन करता है उनकी
यथासंभव मदद करूँ
आँखों में नई खुशियाँ लाऊँ
कुछ देर के लिए ही तो सही
इन बेबस आँखों के लिए
मसीहा तो बन जाऊँ?
मैंने इन आँखों को, मदद किया
और नई चमक ला दिया।
देव कांत मिश्र ‘शिक्षक’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर