दिनकर की धड़कन
परिवेश गुलामी शोषण का
दौर अशिक्षा और अंधविश्वास का
त्राण दिलाने आए दिनकर जी यहां
अपने संवेगधर्मी काव्य धारा से
मिली प्रेरणा कबीर संस्कार तुलसी का
छायावाद की कोमलता और संघर्ष का
युग की पीड़ा को झेला किया हुंकार
प्रण भंग से किया काव्य की शुरुआत
राष्ट्रीयता को गति मिली हुंकार को सुयश
परन्तु आत्मा बसी रही रसवंती में,
हुंकार ने दौड़ाया आग नस नस में
हिम्मत को बदल दिया तलवार में
कहां रश्मिरथी, प्रणभंग, कुरुक्षेत्र
युद्ध का घर घर नांद सुना ही गया,
कहां उर्वशी में निगुढ धड़कन सुना
हाय! हृदय कैसा वह अंगार भरा
रेणुका में वह शिव का करते आह्वान
गिरा दो दुर्ग जड़ता का हे नटवर,
गांधी के प्रति श्रद्धा को रखते हुए
हृदय से वह उग्र क्रांतिकारी थे
इसलिए युधिष्ठिर को रोका नहीं
पर लौटाने कहा गांडीव गंदा,
रश्मिरथी में कर्ण का चरित्र है जटिल
परशुराम की प्रतीक्षा में आक्रोश है
उर्वशी और पुरुरवा का प्रणय मिलन
उन्होंने कहा अपने समय का सूर्य हूॅं
स्वाधीनता के बाद सत्ता के पक्षधर थे
परन्तु आदर्शों से नहीं समझौता किया
भारत के तकनीकी विकास का स्वप्न
चांद और कवि में साकार किया,
पद्मभूषण मिला उन्नीस सौ उनसठ में
लग गई पुरस्कारों की ही झड़ी
शिखर परिणति हुईं उर्वशी से
धन्य धन्य हो गये वह ज्ञानपीठ से
राष्ट्र कवि, युगचारण क्रान्तद्रष्टा
तुझे शत-शत नमन तुझे है नमन।
कुमारी निरुपमा