दोहावली-देव कांत मिश्र

Devkant

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दोहावली

हे माता जगदम्बिके, तू जग तारणहार।
अनुपम दिव्य प्रताप से, संकट मिटे हजार।।

बढ़ना है जीवन अगर, चलिए मिलकर साथ।
सारी दुनिया आपको, लेगी हाथों-हाथ।।

बेटा है कुल दीप तो, बेटी घर की शान।
दोनों एक समान है, करना इनका मान।।

मुरली की धुन मन सदा, करता भाव-विभोर।
कहाँ छुपे हो साँवरे, नटखट नंदकिशोर।।

गुरु की महिमा का नहीं, कोई पारावार।
शीश झुका आशीष लें, भरें ज्ञान भंडार।।

संतों का संगत करें, लेकर मन विश्वास।
इनके नित सानिध्य से, मिलता नव आभास।।

थिरक उठा मन बावरा, सुन कजरी की तान।
डूबा है संगीत में, सारा हिन्दुस्तान।।

बहन भ्रात के प्रेम का, है राखी त्यौहार।
नेह सूत्र जब बाँधती, मिलती खुशी अपार।।

अन्तर्मन निर्मल करो, जप लो शिव का नाम।
सत्-शुभ सुन्दर भाव से, बनते बिगड़े काम।।

नष्ट करें मत फूल को, तरु के सुन्दर अंग।
गंध बिखेरें रुचिर ये, रहें नित प्रकृति संग।।

मनहर गंगा पावनी, देवों का वरदान।
संरक्षण कर कीजिए, भारत का उत्थान।।

मन यदि निर्मल हो तभी, वातावरण पवित्र।
लगते हैं भूलोक के, सब प्राणी तब मित्र।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

भागलपुर, बिहार

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